1.प्रबंध(Management)की विशेषताएँ क्या है
प्रबंधन एक व्यक्ति या व्यक्तियों का एक समूह है जो संगठन चलाने के लिए जिम्मेदारियों को स्वीकार करता है ।
वे संगठन की सभी आवश्यक गतिविधियों को नियंत्रण करते हैं। प्रबंधन एक निरंतर और कभी खत्म नहीं होने वाली प्रक्रिया है।
प्रबंधन स्वयं काम नहीं करता है। वे संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सभी कार्यकर्ता को काम करने और समन्वय (यानी एक साथ लाने) के लिए प्रेरित करते हैं।
प्रबंध मानवीय प्रयासों के नियोजन, संगठन, समन्वय, निर्देशन एवं नियंत्रण द्वारा उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करता है ताकि निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।
तो इस तरह हम कह सकते हैं कि किसी भी संगठन के निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक साधनों का सर्वोत्तम उपयोग ही प्रबंध है।
कुछ प्रमुख विद्वानों ने प्रबन्ध को इस प्रकार परिभाषित किया है :-
1. लारेंस ए. एप्पले के अनुसार : इनके अनुसार प्रबंध व्यक्तियों के विकास से संबंधित है न कि वस्तुओं के निर्देशन से।
2. हेरोल्ड कुन्टज के अनुसार : प्रबंध औपचारिक रूप से समूहों में संगठित मनुष्यों से तथा उनके मिल-जुलकर काम करने तथा कराने की कला है।
2. प्रबंध (Management) की विशेषताएँ क्या है ?
. प्रबंध की निम्नलिखित कुछ विशेषताएं है :
1.प्रबंध की क्रिया निरंतर चलती रहती है। व्यवसाय में निरंतर समस्याओं के सुधार की आवश्यकता रहती है। इसी कारण प्रबंध को एक सतत् प्रक्रिया कहा जाता है।
2.प्रबंध एक सामूहिक क्रिया है, इसका कार्य अन्य व्यक्तियों के सहयोग से कार्य को सम्पादित कराना है।
3.प्रबंध कला भी है और विज्ञान भी क्योंकि इसके वैज्ञानिक एवं कलात्मक रूपों को अलग नहीं किया जा सकता है।
4.वास्तव में प्रबंध एक सामाजिक क्रिया है क्योंकि मुख्य रूप से इसका संबंध व्यवसाय के मानवीय तत्व से है।
संस्था के सभी कर्मचारी समाज के ही अंग होते हैं।
5.प्रबंध के सिद्धांत विश्वव्यापी हैं। किसी भी उपक्रम में जहाँ मनुष्यों के समन्वित प्रयास होते हैं प्रबन्ध के सिद्धांत लागू किए जा सकते हैं।
3.प्रबंध(Management) के कार्य क्या है
*प्रबन्ध के निम्नलिखित कार्य है :-
1.नियोजन (Planning) :- प्रबंध भविष्य की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाता है ताकि निर्धारित लक्ष्यों की दृष्टि से किए जाने वाले वर्तमान प्रयासों को उनके अनुरूप बनाया जा सके।नियोजन का मतलब होता है कि क्या करना है, क्यों करना है, कहाँ करना है, कब करना है, कैसे करना है तथा किस व्यक्ति द्वारा करना है, इन सभी बातों पर ध्यान देना। इसके साथ ही नियोजन के अंतगर्त विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के तरीकों पर भी विचार किया जाता है।
2.संगठन (Organisation) :-नियोजन द्वारा उद्देश्य एवं लक्ष्य निर्धारित कर लेने के पश्चात उन्हें कार्यन्वित करने की समस्या आती है जिसे प्रबंध संगठन के माध्यम से करता है। संगठन निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति करने वाले तंत्र है। उपक्रम की योजनाएं चाहे कितनी भी अच्छी एवं आकर्षक क्यों न हो यदि अच्छे संगठन का आभाव है तो सफलता की कामना करना निष्फल होगा। इस तरह कुशल एवं प्रभावी संगठन का निर्माण करना बहुत जरूरी रहता है।
3.नियुक्तियाँ (Staffing) :-प्रबंध का प्राथमिक कार्य है कर्मचारियों की नियुक्तियाँ करना है जिसका अर्थ है - संगठन की योजना के अनुसार आवश्यक पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति करना उनको आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करना।
4.निर्देशन (Directing) :- प्रबंध मूलतः व्यक्तियों से कार्य कराने व करने की कला है। प्रबंध का चौथा महत्वपूर्ण कार्य है उपक्रम को निर्देशन अथवा संचालन प्रदान करना। निर्देशन का अर्थ है - संस्था में विभिन्न नियुक्त व्यक्तियों को यह बताना कि उन्हें क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है तथा यह देखता है कि वे व्यक्ति अपना कार्य उसी भांति कर रहे हैं या नहीं। निर्देशन प्रबंध का वह महत्वपूर्ण कार्य है जो संगठित प्रयत्नों को प्रारम्भ करता है।
निर्देशन के अंतर्गत निम्न चार क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है :
1.पर्यवेक्षण (Supervision)
2.सम्प्रेषण (Communication)
3.नेतृत्व (Leadership)
4.अभिप्रेरणा (Motivation)
5.नियंत्रण (Controlling) :-नियन्त्रण से आशय केवल किए गए कार्य की जाँच करना मात्र ही नहीं है बल्कि ऐसे उपाय करना जिससे उपक्रम के कारोबार को निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति हेतु निश्चित योजनाओं के अनुसार चलाया जा सके और यदि उसमें कहीं कोई अंतर आ जाए तो सुधारात्मक कदम उठाया जा सके। नियंत्रण प्रबंध का एक भाग है
1.नियोजन (Planning) :- प्रबंध भविष्य की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाता है ताकि निर्धारित लक्ष्यों की दृष्टि से किए जाने वाले वर्तमान प्रयासों को उनके अनुरूप बनाया जा सके।नियोजन का मतलब होता है कि क्या करना है, क्यों करना है, कहाँ करना है, कब करना है, कैसे करना है तथा किस व्यक्ति द्वारा करना है, इन सभी बातों पर ध्यान देना। इसके साथ ही नियोजन के अंतगर्त विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के तरीकों पर भी विचार किया जाता है।
2.संगठन (Organisation) :-नियोजन द्वारा उद्देश्य एवं लक्ष्य निर्धारित कर लेने के पश्चात उन्हें कार्यन्वित करने की समस्या आती है जिसे प्रबंध संगठन के माध्यम से करता है। संगठन निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति करने वाले तंत्र है। उपक्रम की योजनाएं चाहे कितनी भी अच्छी एवं आकर्षक क्यों न हो यदि अच्छे संगठन का आभाव है तो सफलता की कामना करना निष्फल होगा। इस तरह कुशल एवं प्रभावी संगठन का निर्माण करना बहुत जरूरी रहता है।
3.नियुक्तियाँ (Staffing) :-प्रबंध का प्राथमिक कार्य है कर्मचारियों की नियुक्तियाँ करना है जिसका अर्थ है - संगठन की योजना के अनुसार आवश्यक पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति करना उनको आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करना।
निर्देशन के अंतर्गत निम्न चार क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है :
1.पर्यवेक्षण (Supervision)
2.सम्प्रेषण (Communication)
3.नेतृत्व (Leadership)
4.अभिप्रेरणा (Motivation)
5.नियंत्रण (Controlling) :-नियन्त्रण से आशय केवल किए गए कार्य की जाँच करना मात्र ही नहीं है बल्कि ऐसे उपाय करना जिससे उपक्रम के कारोबार को निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति हेतु निश्चित योजनाओं के अनुसार चलाया जा सके और यदि उसमें कहीं कोई अंतर आ जाए तो सुधारात्मक कदम उठाया जा सके। नियंत्रण प्रबंध का एक भाग है
3 Comments
Nice ji sir ji
ReplyDeleteThanks🙏🙇🙏🙇
DeleteNice
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