Guru Nanak Dev Ji History in Hindi

                 

Guru Nanak Dev Ji History in Hindi 

                  Waheguru ji ka kalsa  
                 waheguru ji ki Fateh

              सिक्ख धर्म का उदय गुरुनानक (Guru Nanak) द्वारा पाच सदियों पहले हुआ था | नानक (Guru Nanak ) एक हिन्दू परिवार से थे और वो मुस्लिम पड़ोसियों के बीच पले बढे | बचपन से ही उन्होंने अपना गहरा आध्यात्मिक चरित्र दिखाया था | उन्होंने परिवार के रीती रिवाजो और रूढ़िवादीयो को तोडकर खाली अनुष्ठानों में बैठने से मना कर दिया | Guru Nanak नानक ने शादी भी की और व्यापार भी किया लेकिन ईश्वर और योग पर उनका ध्यान केन्द्रित रहा |अंततः नानक Guru Nanak एक चारण बने और उन्होंने भगवान की महिमा गाना शुरू कर दिया | उन्होंने मूर्तिपूजा का विरोध किया और देवताओ की पूजा में विशवास नही करते थे | उन्होंने जाति प्रथा के विरुद्ध आवाज उठायी  और सभी मनुष्यों को एक समान पाठ पढाया |

  जन्म और बचपन Origins and Childhood of  
 Guru Nanak Dev in Hindi 
              
          Guru Nanak नानक देव का जन्म 15वी सदी में 14 अप्रैल 1469 को उत्तरी पंजाब के तलवंडी गाँव [वर्तमान पाकिस्तान में नानकना ] के एक हिन्दू परिवार में हुआ | नानक का नाम उनकी बड़ी बहन नानकी के नाम पर रखा गया |वो अपनी माता तृप्ता और पिता मेहता कालू के साथ रहते थे | उनके पिता तलवंडी गाँव में पटवारी थे |उनके परिवार में उनके दादाजी शिवराम , दादी बनारस और चाचा लालू रहते थे | गुरुनानक ने अपनी स्थानीय भाषा के अलावा पारसी और अरबी भाषा भी सीखी थी |

Guru Nanak नानक को बचपन से ही चरवाहे का काम दिया गया था और पशुओं को चराते समय कई घंटो ध्यान में रहते थे | एक दिन उनके मवेशियों ने पड़ोसियों की फसल को बर्बाद कर दिया तो उनको उनके पिता ने खूब डाटा | जब गाँव का मुखिया राय बुल्लर वो फसल देखने गया तो फसल एक दम सही सलामत थी | यही से उनके चमत्कार शुरू हो गये और इसके बाद वो संत बन गये |

आध्यात्मिक पुकार और निस्वार्थ सेवा Spiritual Calling and Selfless Service of Guru Nanak Dev ji
राय बुल्लर ने सबसे पहले गुरु नानक Guru Nanak की दिव्यता को समझा और उससे खुश होकर नानक को पाठशाला में रखा | नानक के गुरु उसकी आध्यात्मिक काव्य रचनाओ को सुनकर चकित रह गये | जब नानक को हिन्दू धर्म के पवित्र जनेऊ समारोह से गुजरने की बारी आयी तो उन्होंने उसमे भाग लेने से मना कर दिया | उन्होंने कहा कि उनका जनेऊ दया ,संतोष ,संयम से बंधा और सत्य का बुना होगा जो ना जल सकेगा ,ना मिटटी में मिल सकेगा , ना खो पायेगा और ना कभी घिसेगा |Guru Nanak नानक के इसके बाद जाति प्रथा का विरोध किया और मूर्ति पूजा में भाग लेने से भी मना करदिया |

Guru Nanak नानक देव के पिता कालू ने सोचा कि उनके पुत्र के आध्यात्मिक तरीके उसको लापरवाह बना रहे है तो उन्होंने नानक को व्यापार के धंधे में लगा दिया | नानक के व्यापारी बनकर कमाई के फायदे से भूखो को भोजन खिलाना शुरू कर दिया तभी से लंगर का इतिहास शुर हुआ था | इससे पहले जब पहली बार नानक को व्यापार के लिए उनके पिता ने भेजा तो उनको 20 रूपये देकर इन पैसो से फायदा कमाने को कहा | रास्ते में उनको साधुओ और गरीब लोगो का समूह मिला तो उन्होंने उन पैसो से उनके लिए भोजन और कपड़ो की व्यवस्था की |नानक जब घर खाली हाथ लौटे तो उनके पिता ने उनको सजा दी | पहली बार Guru Nanak गुरु नानक देव ने निस्वार्थ सेवा को असली लाभ बताया | इसी वजह से लंगर के मुलभुत सिधान्तो का उद्गम हुआ |

शादी और वैवाहिक जीवन Marriage and Family Life of Guru Nanak Dev ji
                              
नानक की बहन नानकी और जीजाजी जय राम ने नानक का विवाह 24 सितम्बर 1487 में मूल चंद की बेटी सुलखनी के साथ कर दिया | उन दोनों की शादी के समय नानक केवल 14 वर्ष के थे और उनकी पत्नी 17 वर्ष की थी | गुरु नानक के रीती रिवाजो के विरोध की वजह से उन्होंने पहले शादी के लिए मना किया था और बारात वापस भेज देने की धमकी दी थी | गुरु नानक और ब्राह्मणों के बीच बहस हो गयी और उससे खफा होकर उन्हें एक जीर्ण कच्ची  मिट्टी की दीवार के पास बिठा दिया | कुछ लोगो की गुरुनानक पर वो दीवार गिराने की साजिश थी |
इस साजिश की सुचना एक वृद्ध महिला ने उनको दी | गुरु नानक मुस्कुराये और उस दीवार एक सदियों तक नही गिरने की घोषणा की | इसके बाद उन्होंने कहा कि ये दीवार बरसों तक उनके विवाह की निशानी बन कर रहेगी | ये दीवार आज भी गुरुद्वारा कंध साहिब , गुरदासपुर पंजाब  में एक कांच में बंद है | अंत में गुरु नानक और सुलखनी ने अग्नि के चारो ओर सात फेरो के स्थान पर चार फेरे लिए | आज इस जगह पर देश विदेश से लोग इस  गुरूद्वारे को देखने आते है |उनके सीरी चंद और लखमी दास नामक पुत्र हुए |नानक अपनी बहन ननकी और जीजाजी जयराम के साथ सुल्तानपुर रहने लगे जहा उनको सरकारी अनाज वितरण का काम किया

              गुरु नानक देव की यात्राये Travels of
                       Guru Nanak Dev ji
                          
 
1499 में नानक देव Guru Nanak की सुल्तानपुर में एक मुस्लिम कवि मर्दना के साथ मित्रता हो गयी जहा उनको शिक्षा मिली थी | नानक और मर्दना एकेश्वर की खोज के लिए निकल पड़े | एक बार नानक देव एक नदी से गुजरे तो उस नदी में ध्यान करते हुए अदृश्य हो गये और तीन दिन बाद उस नदी से निकले और घोषणा की “यहाँ कोई हिन्दू और कोई मुसलमान नही है There is neither Hindu nor Muslim” |

हरिद्वार की यात्रा के दौरान एक दिन उन्होंने लोगो को अपने पूर्वजो के लिए स्वर्ग तक सूर्य की तरफ पूर्व दिशा में गंगाजल चढाते देखा |उन्होंने गंगाजल पश्चिम दिशा में चढ़ाना शुरू कर दिया और जब लोगो ने उन्हें देखा तो उनका उपहास किया | तब उन्होंने उन लोगो को कहा “अगर इस तरह गंगाजल स्वर्ग तक पहुच सकता है तो मै गंगाजल को पंजाब के खेतो तक क्यों ना पहुचा दू जो स्वर्ग से ज्यादा पास है ”

अपनी यात्राओ के दौरान उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम दोनों पूजा स्थलों पर पूजा की |1499 से 1524 तक 25 वर्षो तक उन्होंने भारत में 5 यात्राये की जिसमे वो दक्षिण भारत,श्रीलंका,भारत के पूर्वी प्रान्तों,तिब्बत ,चीन,अरब देशो में अपनी यात्राये की


    सिक्ख धर्म का सिद्धांत Concept of Sikhsim by          .                Guru Nanak Dev ji
                         

Guru Nanak नानक ने मूर्ति पूजा और देवी-देवताओं की पूजा की निंदा करते हुए अद्वैतवादी विश्वास विकसित किया | उनकी शिक्षा के मुख्य रूप से निम्न है
1.  नाम जपना –दैनिक पूजा करो और सदैव भगवान का नाम लेते रहो |
2. किरत करो –गृहस्थ ईमानदार की तरह रोजगार में लगे रहो |
3. वंद चको –परोपकारी सेवा और अपनी आय का कुछ हिस्सा गरीब लोगो में बाटो |

इसके अलावा उन्होंने बताया कि जीवन में पांच चीजे आपके जीवन को बर्बाद कर सकती है
01 अहंकार        02 क्रोध      03 लालच     04 लगाव    05  वासना

Guru Nanak नानक ने जाति के पदानुक्रम समाप्त किया | उन्होंने अपने सारे नियम औरतो के लिए समान बताये और सती प्रथा का विरोध किया |

        गुरु नानक एक दार्शनिक और कवि के रूप में Guru              Nanak Dev as Philosopher and Poet


Guru Nanak नानक ने 7500 पंक्तियां की एक कविता लिखी थी जिसे बाद में गुरु ग्रन्थ साहिब में शामिल कर लिया गया | उन्होंने अपना जीवन नये सिद्धातो के साथ यात्राये करने में बिताया | नानक ने मर्दना के साथ मिलकर कई प्रेरणादायक रचनाए गाई और संगीत को अपना सन्देश देने का माध्यम बनाया | Guru Nanak नानक मुल्तान में आकर रुक गये जहा मर्दना ने अंतिम सांस ली |मर्दना का पुत्र शहजादा उनके पिता के पद चिन्हों पर चला और अपना बाकि जीवन नानक के साथ कवि के रूप में सेवा करते हुए बिताया

    उत्तराधिकारी का चुनाव Choosing a Successor                Guru Nanak Dev ji 
                   

Guru Nanak गुरु नानक अपने जीवन के अंतिम दिनों में करतारपुर बस गये जहा पर उन्होंने अनुययियो का साहचर्य बनाया | उनके जयेष्ट पुत्र सीरी चंद को उनकी बहन ने बचपन में ही गोद ले लिया था | वो सौंदर्य योगी बना और उदासी संप्रदाय की स्थापना करी |उनका दूसरा पुत्र लखमी दास ने शादी करली और गृहस्थ जीवन बिताना शुरू कर दिया |

हिन्दू देवी दुर्गा का भक्त लहना ने गुरु नानक के भजन सुने और वो उनका अनुयायी बन गया | उसने अपना सम्पूर्ण जीवन अपने गुरु और उनके अनुयायीयो की सेवा में लगा दिया | Guru Nanak गुरु नानक ने लहना की परीक्षा ली और उसे अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिएय उचित समझा | गुरु नानक की 22 सितम्बर 1539 को करतारपुर में मृत्यु हो गयी | उनकी मृत्यु के बाद लहना ने अंगद देव के नाम से सिक्ख धर्म को आगे फैलाया....




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